रविवार, 14 दिसंबर 2008

आतँकवाद

जब सब तरफ आतँकवाद का शोर मचा है और मुम्‍बई में हमारे प्रभु वर्ग पर हमला हुआ है तबसे सब आतँकवाद की ही चर्चा कर रहे है तो मैं भी सोचता हूँ कि बहती गंगा में अपनी काली जुबान धो हर डालूं ।

अपना विचार है कि मुम्‍बई का हमला देश के लिये वरदान साबित हो सकता है अगर हमारे प्रभु वर्ग की आँखे खुल जाये और आतँकवाद पर गम्‍भीरता से सोचने लगे ।

अपना विचार है कि ये हमला तीसरे विश्‍व युद्व का पर्ल हार्बर है जिसके कारण अब भारत को गम्‍भीरता से विचार करना ही होगा कि अब उदासीनता की नीति जारी रखी जाये या कुछ किया जायें । तीसरा विश्‍वयुद्व शूरू हो गया है ये बात मै इसलिये कह रहा हूँ कि आतँक से आज पूरे विश्‍व में आप कही भी सुरक्षित नहीं है जहॉं बम नही फटते वहॉं विचारों में जंग है

अमेरिका की अतुलनीय सैन्‍य ताकत का मुकाबला करने के लिये आतँकवादियों ने धर्म का सहारा लिया है और उसे तकनीक के साथ मिलाते हुये बराबरी की टक्‍कर दे रहे है

धर्म हर व्‍यक्ति का पर्सनल मामला होता है लेकिन मुस्लिम समाज में धर्म व्‍यक्तिगत मामला न होकर एक पार्टी राजनैतिक दल की तरह कार्य करता है और अपने अनुयायियों की व्‍यक्तिगत आजादी खत्‍म करके कम्‍युनिस्‍ट पार्टी की तरह कार्य करने लगता है और अन्‍य मत मानने वालों को विरोधी समझने लगता है ।

ये मुम्‍बई हमला मुख्‍यत भारत की अवधारणा पर चोट है भारत की मूल धारणा मेरी समझ में यह है कि हर विचार और मत का सम्‍मान किया जाना चाहिये और भारत हर उस इन्‍सान का देश है जो वसुधैव कुटुम्‍बकम में विश्‍वास करता है भारत केवल हिन्‍दु धर्म का देश नहीं है बल्कि वसुधैव कुटुम्‍बकम की धारणा में विश्‍वास रखने वाले हिन्‍दुओं का देश है और आतँकवादियों ने बम धमाके करके भारतवासियों की इस धारणा को बदलने का प्रयास किया है

उनकी साफ कूटनीति है कि या तो बदलो या फिर अकर्मण्‍य बन कर नष्‍ट हो जाओ ।

देखते है कि आने वाले वर्षो में भारत इसका क्‍या उत्‍तर देता है