शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

सोने के कंगन, चॉंदी की पायल
ओ बन्दिनी कैसे तुझे सुहाती होगी ।
अन्‍तरमन में संघर्ष छिपाये
तेरा जीवन जलता होगा
हंसी में छिपा क्रन्‍दन तेरा
भोले साथी को छलता होगा ।
अन्‍जाने अकेले में तो तेरी अंखिया भर आती होगी ।
महलो की दीवारे ओ सुहागन कैसे तुझे सुहाती होगी ।
जग की खुशियों पर न्‍योछावर , होगी कब तक तेरी चाहें
पलकों की डोरी से कब तक नापेगी प्रियतम की राहें ।
ओ बेबस किसकी ये खुशी
कि ओढी तूने ये बेबसी ।
आह
सुबह जब आंख खुलती होगी तन्‍हाई दिल में चुभती होगी
प्रियतम को पाने की चाहत में आखें तेरी फिर नींद में होती होगी ।

कैद होती ये पराई तो पंक्षी खुद उड आते
बान्‍धे बन्‍धन अपने हाथों कोई कैसे उनको खोले

ये तो बता बन्दिनी ये बन्‍धन कैसे तुझे सुहाते होगें

उड उड आने को आकुल पंक्षी मन तेरा
पंख बार बार तोलता होगा ।
आह
पंख कैसे काटे तूने ये निर्ममता याद तुझे आती होगी ।

भोले साथी की बाहों का घेरा क्‍या याद तुझे दिलाता होगा
उड उड आने को आकुल मन तेरा पंख बार बार फैलाता होगा ।

अब नये नये से साथी है तुम्‍हारे
महाफिल गुलजार और सुनहरे से दिन है तुम्‍हारें ।
अब तुमसे मिलना भी नहीं है और तुम्‍हे देखने की चाहत भी है

आह
तेरी बेबसी के आंसुओ ने जख्‍मी सा किया है कुछ
और तेरे संग की चाहत ने इन आंखो को ऑंसू अनमोल दिये है।

सजा ये तेरे संग के ख्‍वाबों को मिली है
बन के ऑंसू जमीं पे पडें है।

और तेरे अरमान बन के फूल गैर के चमन में खिले है।








2 टिप्‍पणियां:

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

अच्छा प्रयास है,जारी रखें !

हिमांशु पाण्‍डेय ने कहा…

कसम खुदा की मैं कहता हूं, मुझको भूल न पाओगे।
बेशक संग सजन के होगे, मन में हमें ही पाओगे॥

बहुत ही सराहनीय प्रयास